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रेड कार्पेट बिछा तालिबानी राजदूत का स्वागत करने क्यों पहुंचे शी जिनपिंग, अब US के दो कट्टर दुश्मनों पर नजर…

 तालिबान शासित अफगानिस्तान के राजदूत को मान्यता देने वाला चीन पहला देश बन गया है।

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मंगलवार को पड़ोसी अफगानिस्तान समेत 41 देशों के राजदूतों के परिचय पत्र प्राप्त किए, जो किसी प्रमुख राष्ट्र द्वारा अंतरिम तालिबान सरकार की पहली आधिकारिक मान्यता है। 

चीनी राष्ट्रपति ने क्यूबा, पाकिस्तान, ईरान और 38 अन्य देशों के राजदूतों के साथ ग्रेट हॉल ऑफ द पीपल में एक औपचारिक समारोह में तालिबान शासन द्वारा नियुक्त अफगान राजदूत बिलाल करीमी का रेड कार्पेट पर स्वागत किया और उनका परिचय पत्र प्राप्त किया।

तालिबान के मुख्य प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “चीन ने वह समझ लिया है जो बाकी दुनिया नहीं समझ पाई है।” मुजाहिद ने अब रूस, ईरान और अन्य देशों से इसी तरह के कदम उठाने और काबुल के साथ द्विपक्षीय राजनयिक संबंधों को उन्नत करने का आह्वान करते हुए कहा, “हम एकध्रुवीय दुनिया में नहीं हैं।” 

चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, शी ने नए राजदूतों से कहा कि चीन उनके देशों के साथ गहरी दोस्ती और पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग चाहता है। बता दें कि रूस और ईरान अमेरिका के कट्टर दुश्मन और चीन के सहयोगी देश रहे हैं।

इधर, अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा है कि बीजिंग ने तालिबान शासन को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी है या नहीं, यह चीनी अधिकारियों को स्पष्ट करना चाहिए। मिलर ने मंगलवार को कहा कि  संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ तालिबान का संबंध उनके कार्यों पर निर्भर करता है।

बता दें कि अगस्त 2021 में अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन शुरू होने के बाद दुनियाभर के देशों ने उससे संपर्क तोड़ लिए थे।

किसी भी देश ने तालिबान शासन को मान्यता नहीं दी लेकिन अब चीन ने सबसे पहले तालिबान शासन को मान्यता दी है।

तालिबान असल में इस्लामिक चरमपंथी गुट है। 1990 के दशक में सुन्नी इस्लामिक शिक्षा के नाम पर ये आगे बढ़ा और जल्द ही अपना असली चेहरा दिखाने लगा।

सत्ता में आने के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान में इस्लामिक कानून शरिया लागू कर दिया।

एक तरफ चीन की नजर अफगानिस्तान से संबंध सुधार कर वहां के प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर है, दूसरी तरफ तालिबान चाहता है कि चीन की मदद से कई देश उसे मान्यता दें क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से मान्यता न मिलने का खामियाजा उसे भुगतना पड़ रहा है। वर्ल्ड बैंक और इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (IMF) से तालिबान सरकार को तब तक कोई मदद नहीं मिल सकेगी जब तक कि उसे आधिकारिक दर्जा नहीं मिल जाता है।

IMF पहले ही सारे फंड कैंसल कर चुका है। अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने भी अपने-अपने लोन पर रोक लगा दी है।

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