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सोहराय पर्व के मौके पर जादोपटिया पेंटिंग से सज रहे आदिवासी घरों की दीवारें

जामताड़ा: आदिवासियों का प्रमुख त्योहार सोहराय के प्रारंभ होने में अब कुछ ही दिन बचे हैं। जनवरी के दूसरे सप्ताह से इस त्योहार का शुभारंभ होता है। जिस कारण अभी से ही आदिवासी समाज इसकी तैयारी में लग गए हैं। महिलाएं जहां घरों की साफ सफाई और रंगाई पुताई में जुट गई हैं। वहीं सोहराय आयोजन को लेकर विभिन्न जगहों पर बैठकों का दौर जारी है। जानकारों की माने तो सोहराय पर्व के बहाने ही लोग आदिवासी समाज के रहन-सहन के तरीकों को जानते समझते हैं। आदिवासी समाज में रहन-सहन का तरीका औरों से भिन्न है। आदिवासी समाज के लोग कई ऐसे शौक रखते हैं, जो अन्य लोगों में कम ही देखने को मिलते हैं। इसमें सबसे ज्यादा प्रमुख पेंटिंग है।

दीवारों पर दिखती है प्रकृति प्रेम
आदिवासी समाज के लोग अपने घरों के दीवारों में रंगा पुताई के दौरान पेंटिंग बनाना नहीं भूलते हैं। संथाल परगना के आदिवासियों में जादोपटिया पेंटिंग काफी प्रचलित है। इस पेंटिंग के माध्यम से वे लोग अपने इतिहास और पर्व त्यौहार व पशु पक्षी प्रेम को प्रदर्शित करते हैं। यही कारण है कि उन लोगों के घर की दीवार पर पशु पक्षी, पेड़ पौधे फुल और आदिवासियों के कार्य करने के चित्र को उकेरा देखा जा सकता है।

प्रकृति प्रेम और सभ्यता की पेंटिंग
आदिवासी समाज के जानकार और राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक सुनील बास्की ने कहा कि हम लोग अपने घरों की दीवारों को लाल मिट्टी और सफेद मिट्टी से सिर्फ रंगा पुताई ही नहीं करते हैं। बल्कि दीवारों पर उकेरी जाने वाली पेंटिंग के माध्यम से आदिवासी समाज के प्रकृति प्रेम, अपनी सभ्यता संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं। हम लोग केमिकल युक्त रंग का प्रयोग ना कर प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करना ज्यादा पसंद करते हैं। इन कलाकृतियों में प्रेम, उर्वरता, जन्म विवाह और त्योहार के बारे में दिखाया जाता है। यही कारण है कि खासकर लड़कियों को घरेलू कामकाज सीखने के दौरान महिलाएं जादोपटिया पेंटिंग भी सिखाती है। ताकि वह खुद इस पेंटिंग का उपयोग करें और दूसरों को इसे सिखाएं। जो कहीं ना कहीं पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती जा रही है।

सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हैं लोग
आदिवासी समाज में घर बनाना हो या फिर रहन-सहन का तरीका दूसरों से भिन्न है। आदिवासी समाज घर बनाने में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हैं। यही कारण है कि जब वह लोग दो घर बनाते हैं तो एक दूसरे के बीच में गैप रखते हैं। यही नहीं उन लोगों के बैठने में भी ऐसा देखा गया है कि अगर आदिवासी समुदाय के लोग एक जगह बैठते हैं तो वे लोग एक दूसरे से दूरी बनाकर बैठते हैं। यही कारण है कि कोरोना काल में उनकी इस रहन सहन पद्धति की काफी सराहना हुई। बहरहाल इन दिनों आदिवासी गांव में घरों की साफ सफाई के दौरान पेंटिंग बनाते महिलाओं को देखा जा सकता है या फिर कई घरों में पूर्व से यह पेंटिंग बनी दिख रही है।

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