मध्यप्रदेशराज्य

बेकाम साबित हो रही है मप्र कार्य गुणवत्ता परिषद

भोपाल। प्रदेश में सरकारी स्तर पर होने वाले कामों की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए करीब ढाई साल पहले मप्र कार्य गुणवत्ता परिषद का गठन किया गया था। लेकिन आज भी मप्र कार्य गुणवत्ता परिषद कागजी घोड़ा बनकर रह गया है। दरअसल, अभी तक संगठन को पूरा स्टाफ नहीं मिल पाया है। यह स्थिति तब है जब मप्र कार्य गुणवत्ता परिषद के अध्यक्ष मुख्यमंत्री हैं। इस स्थिति में परिषद बेकाम साबित हो रहा है। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने ढाई साल पहले मुख्य तकनीकी परीक्षक (सीटीई) को अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से सीटीई को समाप्त करते हुए उसके स्थान पर मप्र कार्य गुणवत्ता परिषद् का गठन 13 मई 2022 को किया था। गठन के बाद से ही परिषद दम दोड़ता हुआ नजर आ रहा है। गुणवत्ता पूर्ण तरीके से निर्माण कार्य कराने का दंभ ठोकने वाले अफसरों की पोल खुलती नजर आ रही है। क्योंकि जब निर्माण कार्यों की जांच एजेंसी ही ठप्प पड़ी हो तो निर्माण कार्यों की मानीटरिंग कैसे होगी। दिलचस्प पहलू यह है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने ढाई वर्ष पूर्व मुख्य तकनीकी परीक्षक को समाप्त करते हुए निर्माण कार्यों की मानीटरिंग को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से परिषद् का गठन किया था।

अभी तक नहीं मिला पूरा स्टाफ

मप्र कार्य गुणवत्ता परिषद का गठन हुए ढाई वर्ष का समय बीत जाने के बाद भी निर्माण सामग्री की गुणवत्ता की जांच करने के लिए स्टॉफ ही नहीं है। परिषद का कार्य चुनिंदा स्टॉफ से करवाया जा रहा है। मप्र कार्य गुणवत्ता परिषद के गठन पश्चात महज दो आईएएस अफसरों को अभी तक महानिदेशक बनाया गया है। इनमें एसीएस के पद से रिटायर हुए अशोक शाह के बाद मनीष सिंह को महानिदेशक बनाया गया, लेकिन नियुक्ति के तीन माह के भीतर ही मनीष सिंह चलते बने। वैसे गुणवत्ता परिषद को समाप्त करने का काम आईएएस अशोक शाह ने ही किया है। यहां एक ईएनसी, तीन चीफ इंजीनियर, छह अधीक्षण यंत्री, 12 कार्यपालन यंत्री और इतने ही सहायक यंत्री पदस्थ रहते थे। साथ ही 24 उपयंत्री भी कार्यरत रहे हैं। अब महज एक प्रभारी चीफ इंजीनियर कार्यरत हैं। प्रदेश में हजारों-लाखों करोड़ों के निर्माण कार्य निर्माण से जुडें विभागों द्वारा करवाए जा रहे है। इनमें मेडीकल कॉलेज, स्कूल हॉस्पिटल, हाइकोर्ट बिल्डिंग, सामुदायिक भवन के अलावा सडक़ों के निर्माण भी सरकार द्वारा करवाए जा रहे है। चूंकि निर्माण कार्यों की जांच करने वाली एजेंसी मुख्य तकनीकी परीक्षक सतर्कता दो वर्ष पूर्व पूर्व सरकार ने सम समाप्त कर दी है। इसलिए गठित गुणवत्ता परिषद में अमले की कमी की वजह से इन निर्माण कार्यों की जांच भी नहीं हो पा रही है।

परिषद को जांच देने में रुचि

प्रदेश में सरकारी स्तर पर होने वाले तमाम कामों को लेकर हर रोज विभागों के पास से लेकर सरकार तक ढेरों शिकवा शिकायतें पहुंच रही हैं, लेकिन इसके बाद भी विभागों द्वारा कामों की जांच मप्र कार्यगुणवत्ता परिषद को नही दी जा रही है। इसकी वजह से अब तो गुणवत्ता परिषद को लेकर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। इसकी वजह है बीते एक साल से गुणवत्ता परिषद बेकाम बनी हुई है। यह बात अलग है कि इसकी वजह से परिषद में पदस्थ अफसर और कर्मचारियों की मौज बनी हुई हैं। उन्हें बगैर किसी काम के वेतन मिल रहा है। प्रदेश में यह हाल तब बने हुए जबकि सरकार का खजाना खाली है और प्रदेश में तमाम निर्माण विभागों के 50 हजार काम चल रहे हैं। जिन विभागों के काम चल रहे हैं उनमें लोक निर्माण विभाग, जल संसाधन, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग शामिल हैं। इन विभागों द्वारा सडक़ों के निर्माण से लेकर सरकारी भवनों पानी की टंकी और सिचाई परियोजनाओं पर काम किया जा रहा है। दरअसल सरकार ने इन कार्यों की क्वालिटी जांचने के लिए कार्य गुणवत्ता परिषद का गठन किया था।

नहीं है कार्रवाई का अधिकार

अहम बात यह है कि गठित की गई परिषद के बाद दोषियों पर कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं है। परिषद इस अधिकार के लिए शासन को पत्र भी लिख चुकी है, लेकिन इस पत्र का क्या हुआ कोई नहीं जानता है। इसकी वजह है सामान्य प्रशासन का वह रुख , जिसमें कार्रवाई का अधिकार विभाग के पास ही रखना चाहती है। परिषद ने निर्माण सहित अन्य विभागों से जानकारी मांगी थी, लेकिन एक भी विभाग ने तो परिषद को कोई जवाब दिया और ना ही उन्होंने कोई जानकारी भेजी। उधर इस मामले में परिषद का कहना है कि दस विभागों के निर्माण कार्यों की जांच की है, कंप्लायंस रिपोर्ट आना बाकी है। इस रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है।  उधर सामाजिक कार्यकर्ता पवन घुवारा का कहना है कि मेरी शिकायत पर बुंदेलखंड पैकेज की जांच सीटीई के जरिए रेंडम की गई। विस्तार से जांच के लिए मामले को ईओडब्ल्यू को दिया गया, लेकिन ईओडब्ल्यू ने कोई जानकारी ही नहीं दी है।

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