पश्चिमी देशों ने हथियार तो दिए लेकिन बांध दिए यूक्रेन के हाथ, क्या है पूरा मामला…
रूस-यूक्रेन युद्ध में लगातार यूक्रेन की मदद करते आ रहे पश्चिमी देशों ने यूक्रेन के ऊपर अब अपनी शर्तें लगा दी हैं।
नाटो के सदस्य देश युद्ध की शुरुआत से ही यूक्रेन की मदद करते आ रहे हैं। रक्षात्मक युद्ध करता आ रहा यूक्रेन के लिए यह मदद उसकी राजधानी बचाने के लिए बहुत ही मददगार रही थी।
लेकिन पिछले एक महीने से यूक्रेन लगातार रूस की सीमा के अंदर घुस कर हमले कर रहा है। पश्चिमी देशों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए यूक्रेन को साफ कर दिया है कि उनके द्वारा दिए गए हथियारों का इस्तेमाल केवल यूक्रेन की जमीन की रक्षा करने के लिए होगा ना कि रूस की जमीन पर कब्जा करने के लिए।
ब्लूमबर्ग में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका समेत पश्चिमी देशों की यह सावधानी समझ में आती है। क्योंकि हाल ही में जर्मनी में नाटो के सदस्य देशों की मीटिंग हुई थी। इस मीटिंग का उद्देश्य यूक्रेन को आगामी मदद के बारे में घोषणा करने का था।
इस मीटिंग पर टिप्पणी करते हुए रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने चेतावनी देते हुए कहा था कि ‘रेड लाइन’ क्रास नहीं होनी चाहिए। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की लगातार अपने साझेदार पश्चिमी देशों से लंबी दूरी की मिसाइलों की मांग कर रहे थे।
अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने इनको केवल उतनी ही मिसाइलें दी जो कि क्रीमिया और अन्य यूक्रेनी क्षेत्रों की रक्षा करने के लिए पर्याप्त हों, इनको देने के साथ ही इन्होंने साफ भी कर दिया कि इनका उपयोग केवल रक्षा के लिए ही होना चाहिए।
पश्चिमी देशों की इस नीति के बाद भी नहीं रुका यूक्रेन, अब बना रहा खुद के हथियार
इस युद्ध में पश्चिमी देश भले ही यूक्रेन की सहायता कर रहे हो, लेकिन वह युक्रेन की सेना और सरकार ही है जो इस समय सीधे युद्ध के मैदान में है।
हाल ही में इटली की पीएम मेलोनी ने भी जेलेंस्की से मुलाकात के बाद कहा कि हम यूक्रेन को मदद देना जारी रखेंगे लेकिन इन हथियारों का इस्तेमाल केवल युक्रेन की जमीन की रक्षा के लिए ही होगा ना कि रूस पर आक्रमण करने के लिए। जेलेंस्की ने इस पर कहा था कि हमने लगातार भूमिगत हथियार निर्माण केंदों का विकास किया है।
भले ही हमारे पश्चिमी साझेदारों की तरफ से हथियारों की सप्लाई में देरी हो रही हो लेकिन हम अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हट रहे हैं। यूक्रेन अब अपने हथियारों की दम पर युद्ध में अपनी बढ़त को बनाए रखने का काम करेगा। यूक्रेन अपने इन भूमिगत केंद्रों में ड्रोन और बंदूकें जैसे हल्के और किफायती हथियारों का निर्माण कर रहा है और इन्हीं का इस्तेमाल करके उसनें पिछले एक महीने में हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा रूसी जमीन पर कब्जा जमा कर रखा है।
पश्चिमी देशों की इस नीति की कई विशेषज्ञों द्वारा आलोचना भी की गई है। ब्लूमबर्ग में छपे इनके लेखों के अनुसार, इस नीति के कारण यूक्रेन के हाथों को बांध दिया गया है। यूक्रेन को अगर लंबी दूरी की मिसाइलों का सधा हुआ उपयोग करने को दिया जाता तो यह युद्ध इतना लंबा नहीं खिंचता।
रूस के अंदर नागरिक केंद्रों या शहरों के अलावा भी कई ठिकानों पर इन मिसाइलों से हमला किया जा सकता था। इनमें एयरपोर्ट, सैन्य ठिकाने, संचार केंद्र, ट्रेनिंग सेंटर और अन्य सैन्य स्थान शामिल थे। इससे रूस की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता और वह इस युद्ध को और लंबा खींचने में असमर्थ होता।
हालांकि पुतिन की परमाणु धमकी को नजरअंदाज करना सही नहीं होता लेकिन पुतिन का परमाणु हथियारों का उपयोग करना इतना आसान भी नहीं है क्योंकि इससे उसे चीन और भारत जैसे देशों का जो पारंपरिक समर्थन मिलता रहा है वह भी गंवाना पड़ेगा और वह एकदम अकेला हो जाएगा, जो कि वह कभी नहीं चाहता।
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