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छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के मनेंद्रगढ़ जनपद पंचायत की ग्राम पंचायत महाई के एक छोटे से किसान श्री मोहित/पिता श्री लल्ला की जिंदगी हर बीतते दिन के साथ सूखती फसल की तरह निराशा में घिरता जा रहा था । मोहित के पास तीन एकड़ जमीन तो थी, लेकिन बिना सिंचाई साधन के वह जमीन सिर्फ बारिश की भरोसे पर निर्भर था । हर साल अनिश्चित बारिश और पानी की कमी ने उनके लिए खेती को घाटे का सौदा बना रहा था । जैसे-जैसे फसलें असफल हो रही थीं, मोहित का आत्मविश्वास टूटता जा रहा था। खेती के घाटे ने उन्हें मजबूर कर दिया कि वे अब मजदूरी का सहारा लें।
एक किसान जिसकी जमीन कभी उसके जीवन का आधार थी, अब उसके लिए एक बोझ बन चुका था । लेकिन यह कहानी यहीं खत्म नहीं हुआ। यह कहानी मोहित के संघर्ष और उनकी किस्मत बदलने वाले एक अद्भुत बदलाव की है।
मोहित का बारिश के भरोसे से आत्मनिर्भरता तक का सफर
जब ग्राम पंचायत महाई में जिला प्रशासन ने किसानों की समस्याओं पर ध्यान दिया, तो मोहित की हालत ने अधिकारियों को सोचने पर मजबूर कर दिया। उनकी जमीन को देखकर यह साफ हो गया कि अगर सिंचाई की सुविधा मिल जाए, तो यह जमीन सिर्फ उपजाऊ ही नहीं, बल्कि समृद्धि का साधन बन सकती है। यहीं से शुरू हुआ बदलाव का सफर। मनरेगा योजना के तहत डबरी निर्माण कार्य को स्वीकृति मिली। डबरी निर्माण के लिए 2 लाख 28 हजार रुपए का प्रशासनिक स्वीकृत बजट पास किया गया। लेकिन सिर्फ बजट ही पर्याप्त नहीं था। सही स्थान का चयन, निर्माण सामग्री की उपलब्धता और जल संग्रहण को सुनिश्चित करना, इन सभी चुनौतियों का सामना ग्राम पंचायत महाई और जिला प्रशासन ने किया। विशेषज्ञों की मदद से मोहित के खेत में जलभराव वाली उपयुक्त जगह का चयन किया गया और मनरेगा के माध्यम से निर्माण कार्य शुरू हुआ।
मोहित के साथ-साथ गांव वालों को भी मिला रोजगार
इस डबरी निर्माण कार्य में न केवल मोहित का परिवार लाभान्वित हुआ, बल्कि गांव के कई मजदूरों को भी लाभ मिला । डबरी निर्माण ने पूरे गांव को 100 दिनों का रोजगार दिया । यह काम सिर्फ मोहित की जमीन को सिंचाई योग्य बनाने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह पूरे समुदाय को सशक्त बनाने की दिशा में भी एक बड़ा कदम था।
जब डबरी का निर्माण पूरा हुआ, तो यह केवल एक जलाशय नहीं था, बल्कि मोहित के सपनों को नया आधार मिला । उनकी जमीन पर अब सिर्फ पानी का इंतजार नहीं था; यह एक ऐसी जमीन बन गई थी, जो सालभर पूरी तरह उपजाऊ होने वाला था ।
इस डबरी ने मोहित को न केवल पारंपरिक फसलों की पैदावार बढ़ाने का मौका दिया, बल्कि उन्हें नए प्रयोग करने का आत्मविश्वास भी दिया। उन्होंने अपनी जमीन पर सब्जी की खेती शुरू की और पहली बार मछली पालन का साहस किया। इस बार उन्हें मछली पालन से 50 हजार रुपए का मुनाफा हो रहा है। वहीं धान की फसल से 40 हजार रुपए की आय हो रहा है।
मोहित कहते हैं कि "पहले मैं सिर्फ बारिश के भरोसे रहता था। फसल खराब होती थी, तो हाथ में कुछ भी नहीं बचता था। लेकिन अब मेरे पास अपनी डबरी है। मैं सब्जी और मछली पालन से भी अच्छी आय अर्जित कर रहा हूं। अब मुझे भविष्य के लिए चिंता नहीं बल्कि नई उम्मीदें हैं।"
डबरी निर्माण ने दी मोहित की आत्मविश्वास को नई राह
डबरी निर्माण ने सिर्फ उनकी आय नहीं बढ़ाई, बल्कि आत्मनिर्भरता की भावना भी जगाई। अब मोहित अपनी जमीन पर गर्व महसूस करते हैं। उनकी मेहनत और योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन ने उनके जीवन को पूरी तरह बदल दिया। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार ने जिस तरह से किसानों की समस्याओं को समझते हुए ठोस कदम उठाए हैं, वह ग्रामीण विकास का एक बेहतरीन उदाहरण है। डबरी निर्माण जैसी योजनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि सही नीति और दृढ़ इच्छाशक्ति से छोटे किसानों की जिंदगी बदली जा सकती है।
मोहित की डबरी सिर्फ एक जलाशय नहीं, बल्कि उनके संघर्ष की जीत का प्रतीक है। यह कहानी साबित करती है कि छोटे और प्रभावशाली बदलाव किस तरह से बड़े परिणाम ला सकते हैं। डबरी ने मोहित को न केवल आर्थिक स्थिरता दी, बल्कि आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान का तोहफा भी दिया। मोहित की कहानी हर उस किसान के लिए एक प्रेरणा है, जो संसाधनों की कमी के बावजूद बेहतर भविष्य का सपना देखता है। यह सिर्फ एक किसान की नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के ग्रामीण विकास की भी कहानी है, जहां हर बूंद से खुशहाली की फसल उगाई जा रही है।