रामा और श्यामा तुलसी में क्या होता है अंतर? जानिए इनका धार्मिक और औषधीय महत्व
तुलसी भारतीय संस्कृति में धार्मिक और औषधीय महत्व रखती है. पूजा पाठ में तुलसी के पौधे को विशेष स्थान दिया जाता है, क्योंकि इसे धार्मिक अनुष्ठानों और यज्ञों में पवित्र माना जाता है. आयुर्वेद में तुलसी को कई स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है. यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने, तनाव कम करने, और कई बीमारियों से राहत प्रदान करने में सहायक होती है. तुलसी के पत्ते, अर्क, और चाय के रूप में सेवन से शरीर की सफाई होती है और संपूर्ण स्वास्थ्य में सुधार होता है. वहीं पूजा पाठ और औषधीय के रूप में इस्तेमाल होने वाली तुलसी अलग अलग है. एक रामा तुलसी कहलाती है और दूसरी श्यामा तुलसी.
रामा तुलसी और श्यामा तुलसी
लोकल 18 के साथ बातचीत के दौरान उत्तराखंड के ऋषिकेश में स्थित श्री सच्चा अखिलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी शुभम तिवारी ने बताया कि तुलसी का भारतीय संस्कृति में गहरा धार्मिक और औषधीय महत्व है. पूजा-पाठ में तुलसी का पौधा विशेष रूप से पूजनीय माना जाता है और इसे भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का प्रिय माना जाता है. औषधीय दृष्टिकोण से, तुलसी को आयुर्वेद में महत्वपूर्ण माना जाता है. यह रोग प्रतिकारक शक्ति को बढ़ाने, तनाव को कम करने और संक्रामक बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करने में सहायक है. वहीं पूजा पाठ और औषधीय तत्वों से युक्त तुलसी अलग अलग होती है. तुलसी के प्रकार की बात करें तो तुलसी दो प्रकार की होती है रामा और श्यामा.
रामा तुलसी और श्यामा तुलसी में अंतर
रामा तुलसी और श्यामा तुलसी दोनों ही महत्वपूर्ण पौधे हैं, लेकिन इनमें कुछ प्रमुख अंतर हैं. रामा तुलसी के पत्ते हरे रंग के होते हैं और इसका स्वाद अपेक्षाकृत माइल्ड होता है. यह पौधा अक्सर धार्मिक अनुष्ठानों में इस्तेमाल होता है और इसके औषधीय गुण भी अत्यधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं. दूसरी ओर, श्यामा तुलसी, जिसे ‘कृष्ण तुलसी’ भी कहा जाता है, के पत्ते गहरे हरे से लेकर बैंगनी रंग के होते हैं और इसका स्वाद तीखा और मजबूत होता है. श्यामा तुलसी को आमतौर पर औषधीय प्रयोगों के लिए अधिक उपयोग किया जाता है, जैसे कि तनाव कम करने और प्रतिरक्षा प्रणाली को सशक्त बनाने के लिए. दोनों तुलसी के पौधों में स्वास्थ्य लाभ हैं, लेकिन उनका उपयोग और गुण अलग-अलग होते हैं.